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पपीता की खेती ने बदली जिंदगी की राह

पपीता की खेती ने बदली जिंदगी की राह

किसी ने ठीक ही कहा कि अकेले खेती करने से समृद्धि नहीं आ सकती। यदि खेती के साथ पशुपालन, उद्यान और बागवानी जैसी चीजें शामिल हों तो बदहाली दहलीज से दूर ही रहेगी। सहनवा, चित्तौडग़ढ़ राजस्थान के किसान गौरीशंकर सालवी ने इसे साकार कर दिखाया। वह अन्य फसलों के साथ मुख्य फसल के रूप में पपीते की खेती करते हैं। वह मानते हैं कि पपीता का एक पेड़ किसान को हजार से ज्यादा की आय दे सकता है। बशर्ते, पपीता के बगीचे की देखरेख अच्छी हो। सालवी अपने खेत में लगे 200 पपीता के पेड़ों से डेढ़ से दो लाख रूपए की आय लेते हैं। उन्हें यह ज्ञान चित्तौडगढ़ के कृषि विज्ञान केन्द्र पर मजदूरी करने के दौरान प्राप्त हुआ। उन्होंने वैज्ञानिकों से आय बढ़ाने के तरीके पूछे और वैज्ञानिकों ने उन्हें बागवानी के साथ मिश्रित खेती करने के गुर सिखाए। कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में अपनाई गई पपीता की खेती से ना केवल आमदनी का ग्राफ बढ़ा। बल्कि, गांव में बागवां के रूप में नई पहचान भी मिली है। किसान का कहना है कि परम्परागत फसलों में लाख मेहनत करने के बाद भी इतनी आय संभव नहीं है। किसान गौरीशंकर ने बताया कि परिवार के पास महज 6 बीघा जमीन है। उन्होंने बताया कि 10वीं पास करने के दौरान ही मम्मी का आकस्मिक देहावसान होने के कारण घर संभालने की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई। पिताजी खेती करते थे और मैं घर का काम देखता था। इसी के चलते 10वीं के बाद पढ़ाई छोडऩी पड़ी। उन्होंने बताया कि पांच साल पहले मैने खेती का दारोमदार संभाला है। दिन में कृषि विज्ञान केन्द्र, चित्तौडग़ढ़ में मजदूरी करता हूँ। वहीं, सुबह-शाम खेती को समय देता हूँ। उन्होंने बताया कि कृषि विज्ञान केन्द्र पर मजदूरी करने के दौरान ही मुझे वैज्ञानिक खेती के तौर-तरीके सीखने का मौका मिला। केन्द्र के उद्यानिकी वैज्ञानिक डॉ. राजेश जलवानिया से एक दिन मैंने आय बढ़ाने का सवाल किया तो उन्होंने मुझे पपीता के साथ सब्जी फसलों की खेती करने की सलाह दी। इसके बाद पिछले तीन साल से पपीता का उत्पादन ले रहा हॅू। उन्होंने बताया कि परम्परागत फसल में  गेहूं, मक्का का उत्पादन लेता हूँ। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि वैज्ञानिकों की सलाह ने मेरे जीवन को बदल दिया हैं। अब ना दिहाड़ी की फ्रिक हैं, ना परिवार के गुजर-बसर की। खेतों से हो रही आमदनी से परिवार की समृद्धि साल दर साल बढ़ रही हैं। ऐसी बदली किस्मत डॉ. जलवानिया की सलाह पर एक बीघा क्षेत्र में पपीते का उत्पादन लेना शुरू किया। उन्होंने बताया कि पशुपालन होने के चलते एक बीघा क्षेत्र में रिजके की फसल लेता हूँ। वैज्ञानिकों की सलाह पर उसी खेत में पपीता का रोपण करना शुरू कर दिया। इससे पशुओं को हरा चारा भी मिलता रहा और आय का ग्राफ भी बढ़ता रहा। उन्होंने बताया कि पपीता की फसल से सालाना डेढ़ से दो लाख रूपए की आय हो जाती है। एक पौधें पर एक क्विंटल तक फलों का उत्पादन मिल जाता है। इसके अलावा कभी आधा बीघा तो कभी एक बीघा क्षेत्र में सब्जी फसल का उत्पादन ले रहा हूँ। सब्जी फसल में मिर्च, टमाटर सहित दूसरी मौसमी फसल शामिल है। इससे भी सालाना 40 हजार रूपए की आय हो जाती है। वहीं, एक बीघा क्षेत्र में गन्ने की फसल से 40-50 हजार रूपए तक आमदनी हो जाती है। उन्नत पशुपालन उन्होंने बताया कि पशुधन में मेरे पास 4 भैंस है। प्रतिदिन 10-12 लीटर दुग्ध का उत्पादन मिलता है। इसमें से एक समय के दुग्ध का विपणन कर देता हॅू। इससे प्रति माह खर्च निकालने के बाद 10 हजार रूपए की शुद्ध बचत मिल जाती है। इससे परिवार का खर्च निकल जाता है। वहीं, पशु अपशिष्ट का उपयोग खेतों में कर रहा हॅू।  
पपीते की खेती से किसानों की हो सकती है दोगुनी आय, जानें कैसे

पपीते की खेती से किसानों की हो सकती है दोगुनी आय, जानें कैसे

अगर आप भी पपीते की खेती (papite ki kheti, papaya farming) करना चाहते हैं तो देर ना करें। आजकल व्यापक पैमाने पर पपीते की खेती की जा रही है। किसान अपने खेतों में पपीते की फसल को अधिक से अधिक लगा रहे हैं। 

इसके पीछे की वजह यह है कि यह बहुत ही कम समय में अधिक मुनाफा देने वाला फसल है। आज के इस दौर में एक साइड बिजनेस की तरह उभर रहा है।

बेहतर मुनाफे के लिए रखना होगा इन चीजों का ध्यान

अन्य फसलों के मुकाबले पपीते ( पपीता (papaya), वैज्ञानिक नाम : कॅरिका पपया ( carica papaya ) ) को उगाना आसान है, क्योंकि इस फसल को बहुत कम रखरखाव की जरूरत होती है और साथ में कम पानी की भी आवश्यकता होती है। 

एक बार जब फसल अच्छी तरह से उपज जाता है तो आपको यह बेहतर मुनाफा दे जाता है। पपीते की खेती से आप औसतन तीन लाख तक का मुनाफा 1 एकड़ जमीन से कमा सकते हैं। यह मुनाफा 5 लाख प्रति एकड़ तक भी जा सकता है। इसके लिए आपको सही समय में सही मौसम में पपीते को खेत में लगाना सुनिश्चित करना होगा।

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अगर आप पपीते से बेहतर मुनाफा कमाना चाहते हैं तो आपको कुछ चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है। अगर आप पपीते के फसल को मार्च से मई के दौरान मार्केट में बेचना चाहते हैं तो उस समय आपको घाटे का सौदा करना पड़ेगा, क्योंकि मार्च से मई के दौरान बाजार में आम की बहुत मांग होती है 

और उस समय बाजार में अधिकतर लोग आम खरीदते हुए दिखाई देते हैं। मार्च से मई के दौरान सभी मजदूर आम तोड़ने और आम को बाजार तक पहुंचाने में व्यस्त रहते हैं। अगर आपको उस वक्त मजदूर मिलते भी हैं तो आपको अधिक भुगतान करना पड़ेगा और आपको बेहतर मुनाफा भी बाजार में नहीं मिल पाएगा। 

इसलिए यह जरूरी है कि सही समय में सही मौसम में बाजार की स्थिति को ध्यान में रखते हुए पपीते की खेती को करना चाहिए, क्योंकि इसे सभी लोग नहीं खरीदते या छोटे-छोटे समूहों के द्वारा खरीदा जाता है। पपीता पोषक तत्वों से भरा बहुत ही लोकप्रिय फल है। अ

गर आप पपीते की खेती करना चाहते हैं तो इसे आप पूरे साल कर सकते हैं। यह दुनिया भर में लोकप्रिय है क्योंकि यह त्वरित रिटर्न देता है।

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अगर ऐसे करेंगे खेती तो मिलेगा खूब लाभ

पपीते की खेती से बेहतर लाभ पाने के लिए आपको अपनी उपज का समय निर्धारित करना होगा। साथ में आपको यह ध्यान रखना होगा कि आप किस प्रकार के बीज को बो रहे हैं। आप बीज को अनेक स्रोतों से प्राप्त कर सकते हैं। 

अगर आप बेहतर क्वालिटी की बीज लेना चाहते हैं तो आप अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से खरीदें। अमूमन भारत के सभी राज्यों में पपीते की खेती की जाती है। कुछ ऐसे राज्य हैं जहां मौसम पपीते के अनुकूल होने के कारण पपीता वहां बहुत तेजी से बढ़ता है। 

पपीता एक उष्णकटिबंधीय फल है। इसे इसमें बहुत ज्यादा पानी की खपत नहीं है। अगर ज्यादा पानी पपीते की जड़ के पास दिख जाए तो पपीता का बर्बाद होना सुनिश्चित हो जाता है। 

मुख्य रूप से पपीता उगाने वाले राज्य केरल, महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और अन्य राज्य हैं। इन सभी राज्यों में अलग-अलग किस्म की पपीते की प्रजाति पाई जाती है। पपीते की खेती के लिए तापमान कम से कम 12 डिग्री होना अनिवार्य माना जाता है। 

अगर यह तापमान 12 डिग्री से नीचे चला जाता है तो पपीता उस क्षेत्र के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं। उस क्षेत्र में भी आप पपीते को नहीं उपजा सकते हैं जहां जलभराव एक चिंता का विषय बना हुआ है। 

बेहतर मुनाफा कमाने के लिए आपको उचित समय उचित मौसम के अनुसार एक्सपोर्ट की राय लेकर इसकी खेती करनी चाहिए। इससे आप बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं।

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फल तैयार होने में लगता है इतना समय

पपीता कोई मौसम के अनुरूप उगाने वाला फल नहीं है। गर्मियों के दौरान पपीते की फलों की मांग ज्यादा होती है और उस वक्त इसका स्वाद भी बहुत ही लाजवाब होता है। सामान्य तौर पर पपीते के फलने का कोई मौसम नहीं होता है।

पपीते के पौधे को अंकुर लगने से लेकर फलने तक 8 से 9 महीने का समय लगता है और इसका पौधा लगभग 3 साल तक जीवित रहता है। अधिकांश पौधे की तुलना में पपीते को बहुत ही कम पानी की आवश्यकता होती है।

ड्रिप सिंचाई करने के बाद प्रत्येक पौधों को लगभग 6 से 8 लीटर पानी की आवश्यकता पड़ती है। अगर आप अपने पपीते के फल को फसल को तेजी से बढ़ाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको सही उर्वरक और मिट्टी की स्थिति को जानना बेहतर होगा।

स्वास्थ्य के लिए भी है लाभप्रद

यह फाइबर, विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है और यह जौंडिस जैसे बीमारी में रामबाण का काम करता हैं। एक मध्यम आकार के पपीते में लगभग 120 कैलोरी पाया जाता है और यह वजन घटाने में भी काफ़ी मददगार साबित होता है। 

इसमें चीनी की मात्रा कम होती जिसके कारण यह मधुमेह रोगियों के लिए काफ़ी लाभप्रद होता है। पपीता विटामिन सी जैसे कई पोषक तत्वों से भी भरपूर होता है जो तनाव से मुक्त रखने में मदद करता है।

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भारत में पहली बार 2014 में नेशनल हॉर्टिकल्चर मिशन यानी राष्ट्रीय बागवानी मिशन ( NHM - National Horticulture Mission ) में पपीते को शामिल किया गया था, जिसके अच्छे परिणाम सामने आये थे। 

किसानों का पपीते की खेती करने से बेहतर मुनाफे के साथ रोजगार के भी विकल्प उभर कर सामने आ रहे हैं। भारत में पपीते की खेती एक बहुत ही लाभदायक और अपेक्षाकृत सुरक्षित कृषि व्यवसाय के तर्ज पर उभर रहा है। यह एक बहुमुखी फसल है और इसकी खेती सब्जियों, फलों और लेटेक्स के लिए की जा सकती है। 

यहां तक ​​कि इसके सूखे पत्तों का बाजार में दवा बनाने के लिए भी बहुत मांग है। अगर आपने सभी बातों का ध्यान में रखते हुए और पपीते की खेती करते हैं तो जाहिर है की आप अच्छी उपज प्राप्त कर पाएंगे और अपनी आय को दोगुनी करने में सक्षम हो पाएंगे।

किसान कर लें ये काम, वरना पपीते की खेती हो जाएगी बर्बाद

किसान कर लें ये काम, वरना पपीते की खेती हो जाएगी बर्बाद

फरवरी का महिना पपीते की खेती करने वाले किसनों के लिए बेहद जरूरी हो सकता है. जिस वजह से इस समय पपीते पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है. अगर ध्यान नहीं दिया तो दूसरी खतरनाक बीमारियां फलों के लगने से पहले ही बर्बाद कर देंगी. एक्सपर्ट्स के मुताबिक पपीते कुछ खास विधि से करेंगे तो इससे अच्छी पैदावार मिल सकती है. जो किसान अक्टूबर में पपीते की खेती करते हैं, उनके पौधा का विकास सर्दियों की वजह से धीमा हो जाता है. जिस वजह से निराई और गुड़ाई की ज्यादा जरूरत होती है. जिसके बाद प्रति पौधे में लगभग 100 ग्राम यूरिया, 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्टेट, 50 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश का इस्तेमाल पौधे के तने से करीब एक से डेढ़ फीट की रूडी पर गोला बना क्र करना चाहिए. इसके बाद जरूरत के हिसाब से हल्की हल्की सिंचाई करते रहें. पपीते के पौधे के पास बनाया गया पपीता रिंग में नीम का का तेल 2 फीसद करीब आधे लीटर स्टीकर में मिलाकर एक एक महीने के अंतराल में करीब 8 महीनों तक स्प्रे करते रहें.

ऐसे करें इलाज, नहीं होगा नुकसान

एक्सपर्ट्स कहते हैं कि, हाई क्वालिटी के फल और पपीतों के पौधों में रोगों से लड़ने के गुण होने जरूरी हैं. इन गुणों को बढ़ाने के लिए दस ग्राम यूरिया के साथ पांच ग्राम जिंक सल्फेट और पांच ग्राम बोरान को प्रति लीटर पानी के हिसाब से अच्छे से घोलकर एक एक महीने के गैप में स्प्रे करें. ऐसा आपको अगले आठ महीने तक करना होगा. इस बात का ध्यान रखें कि, जिंक सल्फेट और बोरोन एक साथ ना घोलें. इन्हें अलग-अलग ही घोलें. क्योंकि ये जमने लगते हैं. ये भी देखें: पपीते की खेती कर किसान हो रहे हैं मालामाल, आगे चलकर और भी मुनाफा मिलने की है उम्मीद

फरवरी का महीना सबसे जरूरी

जड़ गलन अब तक की पपीते में लगने वाली सबसे भयानक बीमारियों में से एक है. इससे निपटने के लिए जरूरी है कि, हेक्साकोनाजोल की लगभग दो मिली दवा को प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोलकर एक एक महीने के गैप में मिट्टी में खूब अच्छी तरह से डालें. ताकि मिट्टी अच्छी तरह से भींग जाए. आपका ऐसा आठ महीनों तक करते रहना है. इसका मतलब इस घोल से मिट्टी को लगातार भिगोते रहना है. अगर आपके पपीते का पौधा बड़ा है तो उसके लिए लगभग पांच से छह लीटर दवा के घोल को डालने की जरूरत होती है. पपीते लगाने का सबसे अच्छा समय मार्च से लेकर अप्रैल तक का होता है. इसलिए फरवरी के महीने में पपीते की नर्सरी लगाने की सलाह दी जाती है.
येलो मोजेक वायरस की वजह से महाराष्ट्र में पपीते की खेती को भारी नुकसान

येलो मोजेक वायरस की वजह से महाराष्ट्र में पपीते की खेती को भारी नुकसान

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि नंदुरबार जिला महाराष्ट्र का सबसे बड़ा पपीता उत्पादक जिला माना जाता है। यहां लगभग 3000 हेक्टेयर से ज्यादा रकबे में पपीते के बाग इस वायरस की चपेट में हैं। इसकी वजह से किसानों का परिश्रम और लाखों रुपये की लागत बर्बाद हो गई है। किसानों ने सरकार से मांगा मुआवजा। सोयाबीन की खेती को बर्बाद करने के पश्चात फिलहाल येलो मोजेक वायरस का प्रकोप पपीते की खेती पर देखने को मिल रहा है। इसकी वजह से पपीता की खेती करने वाले किसान काफी संकट में हैं। इस वायरस ने एकमात्र नंदुरबार जनपद में 3 हजार हेक्टेयर से ज्यादा रकबे में पपीते के बागों को प्रभावित किया है, इससे किसानों की मेहनत और लाखों रुपये की लागत बर्बाद हो चुकी है। महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों में देखा जा रहा है, कि मोजेक वायरस ने सोयाबीन के बाद पपीते की फसल को बर्बाद किया है, जिनमें नंदुरबार जिला भी शामिल है। जिले में पपीते के काफी बगीचे मोजेक वायरस की वजह से नष्ट होने के कगार पर हैं।

सरकार ने मोजेक वायरस से क्षतिग्रस्त सोयाबीन किसानों की मदद की थी

बतादें, कि जिस प्रकार राज्य सरकार ने मोजेक वायरस की वजह से सोयाबीन किसानों को हुए नुकसान के लिए सहायता देने का वादा किया था। वर्तमान में उसी प्रकार पपीता किसानों को भी सरकार से सहयोग की आशा है। महाराष्ट्र एक प्रमुख फल उत्पादक राज्य है। परंतु, उसकी खेती करने वालों की समस्याएं कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। इस वर्ष किसानों को अंगूर का कोई खास भाव नहीं मिला है। बांग्लादेश की नीतियों की वजह से एक्सपोर्ट प्रभावित होने से संतरे की कीमत गिर गई है। अब पपीते पर प्रकृति की मार पड़ रही है।

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पपीते की खेती में कौन-सी समस्या सामने आई है

पपीते पर लगने वाले विषाणुजनित रोगों की वजह से उसके पेड़ों की पत्तियां शीघ्र गिर जाती हैं। शीर्ष पर पत्तियां सिकुड़ जाती हैं, इस वजह से फल धूप से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। व्यापारी ऐसे फलों को नहीं खरीदने से इंकार कर देते हैं, जिले में 3000 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्रफल में पपीता इस मोज़ेक वायरस से अत्यधिक प्रभावित पाया गया है। हालांकि, किसानों द्वारा इस पर नियंत्रण पाने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के उपाय किए जा रहे हैं। परंतु, पपीते पर संकट दूर होता नहीं दिख रहा है। इसलिए किसानों की मांग है, कि जिले को सूखा घोषित कर सभी किसानों को तत्काल मदद देने की घोषणा की जाए।

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पपीता पर रिसर्च सेंटर स्थापना की आवश्यकता

नंदुरबार जिला महाराष्ट्र का सबसे बड़ा पपीता उत्पादक जिला माना जाता है। प्रत्येक वर्ष पपीते की फसल विभिन्न बीमारियों से प्रभावित होती है। परंतु, पपीते पर शोध करने के लिए राज्य में कोई पपीता अनुसंधान केंद्र नहीं है। इस वजह से केंद्र और राज्य सरकारों के लिए यह जरूरी है, कि वे नंदुरबार में पपीता अनुसंधान केंद्र शुरू करें और पपीते को प्रभावित करने वाली विभिन्न बीमारियों पर शोध करके उस पर नियंत्रण करें, जिससे किसानों की मेहनत बेकार न जाए।

येलो मोजेक रोग के क्या-क्या लक्षण हैं

येलो मोजेक रोग मुख्य तौर पर सोयाबीन में लगता है। इसकी वजह से पत्तियों की मुख्य शिराओं के पास पीले धब्बे पड़ जाते हैं। ये पीले धब्बे बिखरे हुए अवस्था में दिखाई देते हैं। जैसे-जैसे पत्तियां बढ़ती हैं, उन पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं। कभी-कभी भारी संक्रमण की वजह पत्तियां सिकुड़ और मुरझा जाती हैं। इसकी वजह से उत्पादन प्रभावित हो जाता है।

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येलो मोजेक रोग की रोकथाम का उपाय

कृषि विभाग ने येलो मोजेक रोग को पूरी तरह खत्म करने के लिए रोगग्रस्त पेड़ों को उखाड़कर जमीन में गाड़ने या नीला व पीला जाल लगाने का उपाय बताया है। इस रोग की वजह से उत्पादकता 30 से 90 प्रतिशत तक कम हो जाती है। इसके चलते कृषि विभाग ने किसानों से समय रहते सावधानी बरतने की अपील की है।
इस राज्य में पपीते की खेती के लिए 75 % प्रतिशत अनुदान दिया जाऐगा

इस राज्य में पपीते की खेती के लिए 75 % प्रतिशत अनुदान दिया जाऐगा

बिहार सरकार की ओर से पपीते की खेती करने वाले कृषकों को अनुदान प्रदान किया जाएगा। इसका फायदा किसान भाई आधिकारिक साइट पर जाकर ले सकते हैं। भारत भर में बहुत सारे फलों की खेती की जाती है।बिहार में भी विभिन्न तरह के फलों की खेती की जाती है, जिसमें लीची काफी ज्यादा खास है। परंतु, फिलहाल सरकार ने पपीते की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए किसान भाइयों को अनुदान देना शुरू कर दिया है।इसकी खेती करने वाले किसानों को बम्पर अनुदान दिया जाऐगा। दरअसल, पपीता की खेती काफी ज्यादा फायदेमंद व्यवसाय है।पपीता एक स्वादिष्ट एवं पौष्टिक फल है, जिसका उपभोग वर्ष भर किया जाता है।बागवानी क्षेत्र में पपीता की खेती की काफी शानदार आय की संभावना को देखते हुए बिहार सरकार प्रदेश के किसानों को प्रोत्साहित कर रही है।इसके अंतर्गत सरकार किसानों को पपीते के बाग लगाने के लिए अच्छा खासा अनुदान देती है।

एकीकृति बागवानी मिशन योजना के तहत मिलेगा लाभ 

एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के अंतर्गत किसानों को पपीता की खेती के लिए 75 फीसद अनुदान दिया जाता है। राज्य सरकार ने पपीता की खेती के लिए प्रतिहेक्टेयर 60,000 रुपये की इकाई लागत तय की है।कृषकों को इस पर 75% (45,000) रुपये का अनुदान मिलेगा। एक हेक्टेयर में पपीता की खेती के लिए केवल 15 हजार रुपये की लागत आऐगी। 

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किसान भाई यहाँ आवेदन करें 

किसान भाई राज्य में पपीते की खेती करने के इच्छुक हैं। साथ ही, सरकार की योजना का लाभ पाना चाहते हैं। ऐसे कृषक आधिकारिक साइट horticulture.bihar.gov.in पर जाकर आवेदन करना पड़ेगा। बतादें, कि अधिक जानकारी के लिए किसान भाई आधिकारिक साइट अथवा नजदीकी उद्यान विभाग के कार्यालय पर जाकर भी संपर्क साध सकते हैं।

पपीते की खेती को प्रोत्साहन दे रही बिहार सरकार

पपीते की खेती को प्रोत्साहन दे रही बिहार सरकार

किसान भाई पपीते की खेती कर तगड़ा मुनाफा हांसिल कर सकते हैं। बिहार में सरकार की तरफ से भारी अनुदान दिया जा रहा है। भारत के अंदर पपीते की खेती काफी बड़े स्तर पर की जाती है। 

पपीता एक ऐसा फल है, जो ना सिर्फ स्वादिष्ट होता है, बल्कि लोगों की सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद होता है। बिहार सरकार की तरफ से एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के अंतर्गत पपीते की खेती करने के लिए कृषकों को अनुदान प्रदान कर रही है। 

अगर आप एक किसान हैं, बिहार में आपके पास जमीन है तो आप पपीते की खेती शुरू कर सकते हैं और शानदार कमाई कर सकते हैं।

बिहार सरकार ने पपीते की खेती करने के लिए इकाई लागत 60 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर निर्धारित की गई है। बतादें, कि इस पर सरकार की तरफ से किसानों को अनुदान भी दिया जाएगा। 

पपीते की खेती करने पर सरकार की तरफ से किसान भाइयों को 75 प्रतिशत मतलब की 45 हजार रुपये सब्सिडी के तौर पर मिलेंगे। इसका अर्थ यह है, कि किसानों को पपीते की खेती करने के लिए केवल 15 हजार रुपये ही खर्च करने पड़ेंगे।

किसानों को काफी अच्छा मुनाफा हांसिल होगा 

विशेषज्ञों की मानें तो पपीते की खेती करने वाले कृषकों के लिए लाभ ही लाभ है। एक एकड़ भूमि में लगभग 1 हजार के आसपास पौधे रोपे जा सकते हैं। इनसे 50 हजार से लेकर 75 हजार किलो के बीच पपीते का उत्पादन होगा। 

पपीता बाजार में काफी शानदार कीमतों पर बिकता है। इसकी मांग साल भर बनी रहती है, जिससे आपको तगड़ा मुनाफा हो सकता है। पपीते के पौधे की नियमित रूप से सिंचाई करने की आवश्यकता होती है। 

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साथ ही, रोग एवं कीटों से सुरक्षा करने के लिए आवश्यक प्रबंधन करना भी जरूरी है। पपीते के पौधे 8-12 महीने के अंदर फल देने लगते हैं। फल को पकने पर तोड़कर बाजार में बेचा जा सकता है।

किसान भाई यहां अप्लाई कर सकते हैं

अगर आप बिहार राज्य के किसान हैं और पपीते की खेती करने में अपनी रूचि रखते हैं तो ये योजना आपके लिए बेहद शानदार रहेगी। योजना का फायदा उठाने के लिए किसान भाई आधिकारिक साइट horticulture.bihar.gov.in पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। 

साथ ही, किसान योजना से संबंधित ज्यादा जानकारी के लिए पास के उद्यान विभाग के कार्यालय पर संपर्क साध सकते हैं। यदि आप भी बेहतरीन मुनाफा अर्जित करना चाहते हैं, तो आज ही पपीते की खेती कर अपना व्यवसाय शुरू कर दें।